40+ Mirza Ghalib Shayari in Hindi | मिर्जा गालिब शायरी हिंदी में
फिर उसी बेवफा पे मरते हैं,
फिर वही जिंदगी हमारी है ।
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हैं और भी दुनिया में
सुख़नवर बहुत अच्छे
कहते हैं कि ग़ालिब का है
अंदाज़-ए-बयाँ और
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हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है,
तुम्हीं कहो कि ये अंदाज़-ए-गुफ़्तगू क्या है।
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ghalib shayari on love
वो उम्र भर कहते रहे तुम्हारे सीने में दिल नहीं,
दिल का दौरा क्या पड़ा ये दाग भी धुल गया !
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यूँ ही गर रोता रहा 'ग़ालिब' तो ऐ अहल-ए-जहाँ,
देखना इन बस्तियों को तुम कि वीराँ हो गईं।
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चिपक रहा है बदन पर लहू से पैराहन
हमारी ज़ेब को अब हाजत-ए-रफ़ू क्या है
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galib ki shayari in hindi
यही है आज़माना तो सताना किसको कहते हैं,
अदू के हो लिए जब तुम तो मेरा इम्तहां क्यों हो।
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वो रास्ते जिन पे कोई सिलवट ना पड़ सकी,
उन रास्तों को मोड़ के सिरहाने रख लिया !
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आगे आती थी हाल-ए-दिल पे हँसी,
अब किसी बात पर नहीं आती।
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mirza ghalib shayari
ये न थी हमारी क़िस्मत
कि विसाल-ए-यार होता
अगर और जीते रहते
यही इंतेज़ार होता
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इश्क़ पर जोर नहीं है ये वो आतिश 'ग़ालिब',कि लगाये न लगे और बुझाये न बुझे।
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ज़िन्दगी अपनी जब शक़ल से गुज़री ग़ालिब
हम भी क्या याद करेंगे के खुदा रखते थे
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कुछ लम्हे हमने खर्च किए थे मिले नही,
सारा हिसाब जोड़ के सिरहाने रख लिया !
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ghalib ki shayari
काबा किस मुँह से जाओगे ग़ालिब
शरम तुमको मगर नहीं आती
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हुई मुद्दत कि ग़ालिब मर गया
पर याद आता है
वो हर इक बात पर कहना
कि यूँ होता तो क्या होता
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रेख़्ते के तुम्हीं उस्ताद नहीं हो 'ग़ालिब',
कहते हैं अगले ज़माने में कोई 'मीर' भी था।
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ghalib shayari
काबा किस मुँह से जाओगे ग़ालिब
शरम तुमको मगर नहीं आती
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हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले,
बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले।
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इश्क़ ने गालिब निकम्मा कर दिया,
वर्ना हम भी आदमी थे काम के !
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पियूँ शराब अगर ख़ुम भी देख लूँ दो चार
ये शीशा-ओ-क़दह-ओ-कूज़ा-ओ-सुबू क्या है
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आईना देख अपना सा मुँह ले के रह गए,
साहब को दिल न देने पे कितना ग़ुरूर था।
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mirza ghalib best shayari
इश्क मुझको नहीं, वहशत ही सही,
मेरी वहशत तेरी शोहरत ही सही !
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था ज़िन्दगी में मर्ग का खटका लगा हुआ
उड़ने से पेश्तर भी मेरा रंग ज़र्द था
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मौत का एक दिन मुअय्यन है,
नींद क्यूँ रात भर नहीं आती।
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हमको मालूम है जन्नत की हकीकत लेकिन,
दिल को खुश रखने को ‘गालिब’ ये ख्याल अच्छा है !
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हमको मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन
दिल के खुश रखने को ‘ग़ालिब’ ये ख़्याल अच्छा है
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हम को उन से वफ़ा की है उम्मीद,
जो नहीं जानते वफ़ा क्या है।
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