allama iqbal shayari in hindi | अल्लामा इकबाल शेर शायरी हिंदी
Hai Iqbal ke vajud pe hindostāñ ko naaz
Ahl-e-nazar samajhte haiñ us ko imām-e-hind.
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Nahi Tera naseman kasre sulltaanik
Gummbad par tu Saahi hai
basera kar pahadoo ki chattanoo par.
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Vatan ki fikr kar nādāñ musibat aane vaali hai
Tiri barbādiyoñ ke mashvare haiñ
äsmānoñ meñ.
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अल्लामा इकबाल देश भक्ति शायरी
अनोखी वजा हैं, सारे ज़माने से निराले हैं
ये आशिक़ कौन सी बस्ती के या रब रहने वाला हैं।
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दियार-इ-इश्क़ में अपना मक़ाम पैदा कर ,
नया ज़माना नई सुबह-ओ-शाम पैदा कर।
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अपने मन में डूब कर पा जा सुराग़-इ-ज़िंदगी,
तू अगर मेरा नहीं बनता न बन, अपना तो बन।
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Allama Iqbal Islamic shayari
नशा पिला के गीराना तो सब को आता है,
मज़ा तो जब है के गिरतों को थाम ले साकी!!
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और भी कर देताहै दर्द में इज़ाफ़ा,
तेरे होते हुए गैरों का दिलासा देना।
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महीने-वस्ल के घड़ियों की ‘सूरत’ उड़ते जाते हैं,
मगर घड़ियाँ जुदाई की गुज़रती हैं महीनों में।
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ग़ुरबत में हों अगर हम, रहता है दिल वतन में,
समझो वहीं हमें भी, दिल हो जहाँ हमारा।
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Allama iqbal Shayari in english
मिटा दे अपनी हस्ती को गर कुछ मर्तबा चाहिए,
कि दाना खाक में मिलकर, गुले-गुलजार होता है।
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जानते हो तुम भी फिर भी अजनान बनते हो,
इस तरह हमें ”परेशान” करते हो,
पूछते हो ‘तुम्हे’ किया पसंद है,
जवाब खुद हो फिर भी सवाल करते हो।
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Jish Khet Se Dahqan ko Mayassar Nahin
Rozi Ush Khet Ke Har Khosha-E-Gandum
Ko Jala Do.
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Ham Se Kya ho Saka Mohabbat Mein
Khair Tum Ne To Bevafai Ki.
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Allama iqbal shayari urdu hindi
इश्क़ क़ातिल से भी मक़तूल से हमदर्दी भी,
यह बता किस से मुहब्बत की जज़ा मांगेगा,
सजदा ख़ालिक़ को भी इबलीस से याराना भी,
हसर में किस से अक़ीदत का सिला मांगेगा।
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फूलों की “पत्तियों” से कट सकता है ‘हीरे’ का जिगर
मर्दे नादान पर #कलाम-ऐ-नरम-ऐ-नाज़ुक बेअसर
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नशा पिला कर गिराना तो सब को आता है,
मज़ा तो जब है के गिरतों को थाम ले साक़ी।
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इक़रार ऐ #मुहब्बत ऐहदे ऐ-वफ़ा सब झूठी सच्ची बातें हैं #इक़बाल.
हर शख्स खुदी की “मस्ती” में बस अपने खातिर जीता है
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Allama iqbal best Shayari hindi
बड़े इसरार पोशीदा हैं इस तन्हाई ”पसंदी” में,
ये न समझो कि ”दीवाने” जहनदीदा नहीं होते,
ताजुब क्या अगर इक़बाल इस_दुनिया तुझ से नाखुश है,
सारे लोग ”दुनिया” में पसंददीदा नहीं होते।
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दुनिया की “महफ़िलों” से उकता गया हूँ या रब,
क्या लुत्फ़ अंजुमन का जब_दिल ही बुझ गया हो।
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हज़ारों साल_नर्गिस अपनी बे-नूरी पर रोती है,
बड़ी मुश्किल से होता है, #चमन में दीदावर पैदा.
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बे-ख़तर ”कूद” पड़ा आतिश-ए-नमरूद में इश्क़
अक़्ल है महव-ए-तमाशा-ए-लब-ए-बाम अभी
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Urdu shayari