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best of ghalib shayari | बेस्ट ऑफ़ गालिब शायरी

best of ghalib shayari | बेस्ट ऑफ़ गालिब शायरी

Ye na thi hamari qismat ki visal-e-yaar hota
Agar aur jiite rahte yahī intizar hota
Na tha kuchh to ḳhuda tha Kuchh na hota to ḳhuda hota
Duboya mujh ko hone ne Na hota maiñ to kya hota
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Hazaaron ḳhvahishen aisi ki har ḳhvahish pe dam nikle
Bahut nikle mire arman lekin phir bhī kam nikle
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले 
बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले
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Aah ko chahiye ik umr asar hote tak
Kaun jeetaa hai teri zulf ke sar hote tak
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मिर्ज़ा ग़ालिब लव स्टोरी

Bazicha-e-atfal hai Duniya mere aage
 Hota hai shab-o-roz Tamasha mere aage
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इश्क़ पर जोर नहीं है ये वो आतिश 'ग़ालिब'
कि लगाये न लगे और बुझाये न बुझे
Ishq Par Jor Nahi Hain Ye Aatish "Ghalib"
Ki Lagaaye Naa Lage Bujhaye Na Bujhe
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दिल से तेरी निगाह जिगर तक उतर गई
दोनों को इक अदा में रज़ामंद कर गई
Dil Se Teri Nigah Jigar Tak Utar Gayi
Dono Ko Ek Adaa Me Rajamand Kar Gayi
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इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना
दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना 
Esharat-E-Katara Hai Dariya Me Fana Ho Jana
Dard Ka Had Se Guzarana Hain Dawa Ho Jana
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गालिब का मतलब

उन के देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक़
वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है 
Un Ke Dekhe Se Jo Aa Jati Hai Munh Pe Raunak
Wo Samjhate Hai Ki Bimaar Ka Hal Achchha Hain
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इश्क़ ने ग़ालिब निकम्मा कर दिया
वर्ना हम भी आदमी थे काम के
Ishq Ne Ghalib Nikamma Kar Diya
Warna Ham Bhi Aadami The Kaam Ke
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हर रज में ख़ुशी की थी उम्मीद बरक़रार,
तुम मुसकरा दिए मेरे ज़माने बन गए।
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कोई मेरे दिल से पूछे तिरे तीर-ए-नीम-कश को
ये ख़लिश कहाँ से होती जो जिगर के पार होता।
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क़रासिद के आते-आते ख़त इक और लिख रखूँ,
मैं जानता हूँ जो वो लिखेंगे जवाब में।
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ग़ालिब की शायरी हिंदी में Dosti ke Liye

न सुनो गर बुरा कहे कोई, न कहो गर बुरा करे कोई
रोक लो गर ग़लत चले कोई, बख़्श दो गर ख़ता करे कोई।
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रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ाइल,
जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है।
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होगा कोई ऐसा भी कि 'ग़ालिब' को न जाने
    शाइर तो वो अच्छा है प बदनाम बहुत है
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 'ग़ालिब' बुरा न मान जो वाइज़ बुरा कहे
     ऐसा भी कोई है कि सब अच्छा कहें जिसे
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कहूँ किस से मैं कि क्या है शब-ए-ग़म बुरी बला है
    मुझे क्या बुरा था मरना अगर एक बार होता
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मिर्ज़ा ग़ालिब शायरी इन हिंदी पीडीएफ

मरते हैं आरज़ू में मरने की
    मौत आती है पर नहीं आती
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जी ढूँडता है फिर वही फ़ुर्सत कि रात दिन
    बैठे रहें तसव्वुर-ए-जानाँ किए हुए
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इस सादगी पे कौन न मर जाए ऐ ख़ुदा 
लड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं 
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इश्क़ पर ज़ोर नहीं है ये वो आतिश 'ग़ालिब' 
कि लगाए न लगे और बुझाए न बने 
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वो आए घर में हमारे ख़ुदा की क़ुदरत है 
कभी हम उन को कभी अपने घर को देखते हैं 
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मिर्ज़ा ग़ालिब की ग़ज़ल

हम को उन से वफ़ा की है उम्मीद 
जो नहीं जानते वफ़ा क्या है
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उन के देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक़ 
वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है
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उन के देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक़ 
वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है
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ग़ालिब की शायरी हिंदी में love

हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले 
बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले
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मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का 
उसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले
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हम को मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन 
दिल के ख़ुश रखने को 'ग़ालिब' ये ख़याल अच्छा है

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