इज़हार ए मोहब्बत शायरी | izhaar e mohabbat shayri
मुहब्बत का कभी इज़हार करना ही नहीं आया, 
मेरी कश्ती को दरिया पार करना ही नहीं आया.
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अच्छा करते हैं वो लोग जो मोहब्बत का इज़हार  नहीं करते, 
ख़ामोशी से मर जाते हैं मगर किसी को बदनाम नहीं करते.
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झुकी हुई नज़रों से इज़हार कर गया कोई, 
हमें खुद से बे-खबर कर गया कोई.
युँ तो होंठों से कहा कुछ भी नहीं.. 
आँखों से लफ्ज़ बयां कर गया कोई.
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मैं लफ़्ज़ों से कुछ भी इज़हार नही करता,
इसका मतलब ये नई के मैं तुझे प्यार नही करता,
चाहता हूँ मैं तुझे आज भी पर 
तेरी सोच मे अपना वक़्त बेकार नही करता.  
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दिल की आवाज़ को इज़हार कहते है,
झुकी निगाह को इकरार कहते है.
सिर्फ पाने का नाम इश्क नहीं, 
कुछ खोने को भी प्यार कहते है.
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तेरी आँखो का इज़हार मै पढ़ सकता हूँ पगली 
किसी को अलविदा युँ मुस्कुराकर नहीं कहते.
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कब उनकी पलकों से इज़हार होगा ? 
दिल के किसी कोने में हमारे लिए प्यार होगा.
गुज़र रही है हर रात उनकी याद में, 
कभी तो उनको भी हमारा इंतज़ार होगा.
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तुझसे मैं इज़हार -ए-मोहब्बत इसलिए भी नहीं करता,
सुना है बरसने के बाद बादल की अहमियत नहीं रहती.
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कर दिया “हमनें” भीं “इज़हार-ए-मोहब्बत” फोन पर
लाख रूपये की बात थी, “एक” रूपये में हो गयी.
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इश्क़ वही है जो हो एकतरफा हो 
इज़हार-ऐ-इश्क़ तो ख्वाहिश बन जाती है.
है अगर मोहब्बत तो आँखों में पढ़ लो 
ज़ुबान से इज़हार तो नुमाइश बन जाती है.
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इज़हार-ए-याद करुँ या पूछूँ हाल-ए-दिल उनका,
ऐ दिल कुछ तो बहाना बता उनसे बात करने का. 
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वो सज़दा ही क्या जिसमे सर उठाने का होश रहे,
इज़हार ए इश्क़ का मजा तब जब मैं बेचैन रहूँ और तू ख़ामोश रहे.
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कोई ख्वाइश कोई इज़हार बाकी है, 
तुझसे जुडा इंतज़ार बाकी है.
सांसो का छूट जाना तो मुक़द्दर है मगर, 
मेरा ज़िन्दगी से कुछ करार बाकी है..
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यार बता दे ज़रा कैसे करुँ मेँ इजहार-ए-ईश्क
शायरी वोह समझती नहीँ और अदाए हमें आती नहीँ!!
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तेरे हर गम को अपना बना लूँ
आजा तुझे अपनी पलकों में छिपा लूँ !!
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और इतनी भी उदासी किस काम की
थोड़ा इश्क़ करलो वरना जिंदगी किस काम की !!
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हयात को तेरा दुश्वार किस तरह करता
मैं तुझ से प्यार का इज़हार किस तरह करता !!
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इज़हार-ऐ-याद कहूँ या पूछूँ हाल-ऐ-दिल उनका
ऐ दिल कुछ तो बहाना बता उनसे बात करने का !!
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मोहब्बत का कभी इज़हार करना ही नहीं आया
मेरी कश्ती को दरिया पार करना ही नहीं आया !!
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ना दूर रहने से रिश्ते टूट जाते हैं
ना पास रहने से जुड़ जाते हैं
यह तो एहसास के पक्के धागे हैं
जो याद करने से और मजबूत हो जाते हैं !!
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चाह कर भी इश्क़-ए-इज़हार जो हम कर ना सके
हमारी ख़ामोशी पढ़ लो तुम और क़ुबूल कर लो हमें !!
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आँखों का काजल जुल्फों का गजरा
बना लिया खुश्बू की तरह हमने
तुमको दिल में बसा लिया !!
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रूठना मत कभी हमें मनाना नहीं
आता दूर नहीं जाना हमें बुलाना नहीं
आता तुम भूल जाओ हमें यह तुम्हारी मर्ज़ी है
हम क्या करें हमें भुलाना नहीं आता !!

