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sher o shayari on zindagi | शेर ओ शायरी ऑन जिंदगी

 sher o shayari on zindagi | शेर ओ शायरी ऑन जिंदगी

आजकल लोग अपने आप से ज्यादा 
मोबाइल सम्भाल के रखते है, 
क्योंकि रिश्ते सारे अब इसी में कैद हो के रहने लगे है..
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ज़िंदगी बेहतर बनाने में ज़िंदगी को ही वक्त नहीं दे रहे है। 
कल की परेशानी के चलते आज को जी नहीं पा रहे है...
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नई रेख़्ता शायरी

कागज लिए-लिए हाथों में सोचता ही रह जाता हूँ,
 जब तक रूह से राबता ना होती है,
 तब तक कुछ लिख नहीं पाता हूँ।...
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हर समझौते में समझदार ही क्यों झुकता है, 
कोई झांक के देखे एक बार की वो अंदर से कितना टूटता है...
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खुदगर्ज रेख़्ता शायरी

कहना और पूछना तो बहुत है तुमसे ए ज़िंदगी, 
बस बयां करने का तरीका और अलफ़ाज़ ढूंढ रहा हूँ...
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"hum vo hain jo khuda ko bhool gaye
tum meri jaan kis gumaan mein ho
हम वो हैं जो ख़ुदा को भूल गए
तुम मेरी जान किस गुमान में हो
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प्रेरणादायक शायरी रेख़्ता

teri soorat se hai aalam mein bahaaron ko sabaat
teri aankhon ke siva duniya mein rakha kya hai
तेरी सूरत से है आलम में बहारों को सबात
तेरी आँखों के सिवा दुनिया में रक्खा क्या है
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maine usko itna dekha jitna dekha ja saka tha
lekin phir bhi do aankhon se kitna dekha ja saka tha
मैंने उसको इतना देखा, जितना देखा जा सकता था
लेकिन फिर भी दो आँखों से कितना देखा जा सकता था
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जी लो जिंदगी शायरी

तुम्हें हुस्न पर दस्तरस है 
मोहब्बत - वोहब्बत बड़ा जानते हो
तो फिर ये बताओ कि तुम
 उसकी आंखों के बारे में क्या जानते हो
ये ज्योग्राफिया, फ़लसफ़ा, साइकोलाॅजी, साइंस, रियाज़ी वगैरह
ये सब जानना भी अहम है
 मगर उसके घर का पता जानते हो ?
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sochun to saari umr mohabbat mein kat gai
dekhoon to ek shakhs bhi mera nahin hua
सोचूँ तो सारी उम्र मोहब्बत में कट गई
देखूँ तो एक शख़्स भी मेरा नहीं हुआ
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जिंदगी शायरी रेख़्ता

le de ke apne paas faqat ik nazar to hai
kyun dekhen zindagi ko kisi ki nazar se hum
ले दे के अपने पास फ़क़त इक नज़र तो है
क्यूँ देखें ज़िंदगी को किसी की नज़र से हम
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उसने मेरी हथेली पे अपनी नाज़ुक सी
ऊँगली से लिखा मुझे प्यार है तुमसे...
न जाने कैसी स्याही थी की वो..
लफ्ज़ मिटे भी नहीं और
आज तक दिखे भी नहीं...
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परेशान जिंदगी शायरी

नाम हम ने लिखा था आँखों में
आँसुओं ने मिटा दिया होगा
आसमाँ भर गया परिंदों से
पेड़ कोई हरा गिरा होगा
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कितना दुश्वार था सफ़र उस का
वो सर-ए-शाम सो गया होगा
आस होगी न आसरा होगा
आने वाले दिनों में क्या होगा
मैं तुझे भूल जाऊँगा इक दिन
वक़्त सब कुछ बदल चुका होगा
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रहिये अब ऐसी जगह चलकर जहां कोई न हो
हम-सुखन कोई न हो और हमजुबां कोई न हो
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उनसे कह दो मुझे खामोश ही रहने दें 'वसीम',
लब पे आएगी तो हर बात गिराँ गुज़रेगी

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