लंबे जीवन के लिए किडनी का रखिए ख्याल
आज हर दस में से एक व्यक्ति किडनी रोग से ग्रस्त है। गलत खान-पान, फिजिकल एक्टिविटी में कमी, दबाव व चिंता से यह रोग हमें चपेट में ले रहा है। अत्यधिक एंटीबायोटिक और पेन किलर का सेवन भी किडनी को बीमार कर रहा है। अतः 40 वर्ष की आयु में एक बार हेल्थ चेकअप जरूर कराएं। इस बार वर्ल्ड किडनी डे का थीम है- "सबके लिए, सभी जगह किडनी हेल्थ समान रूप से सुनिश्चित हो।"शरीर में किडनी का मुख्य कार्य शुद्धिकरण का होता है, लेकिन शरीर में किसी रोग की वजह से जब दोनों किडनी अपना सामान्य कार्य करने मे अक्षम हो जाते हैं, तो इस स्थिति को हम किडनी फेल्योर कहते हैं। अगर किसी को किडनी कि बीमारी हो जाती है, तो तुरंत गुर्दा रोग विशेषज्ञ से मिलना चाहिए। दरअसल, समय पर सही इलाज होने से डायलिसिस से बचा जा सकता है। किडनी रोग का मतलब ही डायलिसिस होता है, इस भ्रम में नहीं रहिए। हर एक डायलिसिस पर जाने वाले मरीज पर ऐसे 50 मरीज होते हैं, जो मात्र दवाई, जीवनशैली और खानपान में बदलाव लाकर ही स्वस्थ रहते हैं।
इलाज से बेहतर है बचाव : किसी भी रोग का इलाज करवाने से हमेशा बेहतर होता है, उससे बचाव करना। यह बात गुर्दा रोगों के लिए ज्यादा महत्वपूर्ण है, क्योंकि अक्सर यह रिवर्सिबल नहीं होता। बचाव के लिए जीवनशैली में कुछ बदलाव जरूरी है, जैसे- शुगर तथा बीपी पर कंट्रोल रखना, अपने आहार में नमक तथा मांसाहारी चीजों को शामिल नहीं करना, मोटापा पर कंट्रोल रखना, नियमित व्यायाम को अपने दिनचर्या में शामिल करना, धूम्रपान न करना आदि।
शुगर व बीपी के मरीज रहें सतर्क : नेफ्रोलॉजिस्ट डॉ प्रज्ञा पंत बताती हैं कि अस्पताल में किडनी के मरीजों में से ज्यादातर डायबिटिक नेफ्रोपैथी तथा बीपी नेफ्रोपैथी के मरीज काफी आते है। डायबिटीज तथा हाई बीपी का अनियंत्रित रहना ही इनका मुख्य कारण है। शुगर या बीपी कंट्रोल में न रहे तो उससे अनेक बड़ी बीमारियों से हम ग्रसित हो सकते हैं। किडनी की बीमारी भी उनमें से एक है। डायबिटीज नेफ्रोपैथी में शरीर सूजने लगता है, जो पैरों से शुरू होता है। डायबिटिक नेफ्रोपैथी के मरीजों में शुगर को कंट्रोल में रख कर साथ में किडनी की दवाइयां दी जाती हैं। ऐसे में किडनी के मरीजों को समय-समय पर बेहतर देखभाल की जरूरत होती है।
आनुवंशिक रोग भी जिम्मेदार : किडनी रोग में जेनेटिक रोग भी शामिल हैं। आमतौर पर शुरू में इसका पता लगाना मुश्किल है तथा टेस्ट में भी इसके लक्षण सामने नहीं आते। इसमें मरीज के किडनी में सिस्ट बन जाता है और किडनी का आकार बड़ा होने लगता है, ज्यादातर 40 वर्ष की आय में इसका अनुमान होता है।
ध्यान दें : किडनी फेल्योर के लिए हमारी गलत आदतें भी जिम्मेवार हैं। कम पानी पीने के कारण भी किडनी प्रभावित होती है, इसलिए रोज न्यूनतम दो लीटर पानी जरूर पीएं। एक्सरसाइज करें। शूगर, हाई बीपी और मोटापे से बचाव करें। यदि ये रोग हैं, तो सही इलाज लें और परहेज रखें। चेकअप कराते रहे। नमक पांच ग्राम प्रतिदिन से ज्यादा न लें। धूम्रपान व कोई नशा न करें। बेमतलब दवाइयां न खाएं। सामान्य दवाइयां, जैसे- नॉन स्टेरॉयडल, एंटी इन्फ्लेमेटरी ड्रग आइब्यूप्रोफैन लगातार लेने से किडनी डैमेज हो सकता है।
इन आदतों से बचें
- पेशाब आने पर जबरन रोकना किडनी की सेहत को खराब करता है।
- पानी कम मात्रा में पीने से किडनी को खतरा रहता है।
- शुगर के इलाज में लापरवाही करने से भी किडनी पर असर होता है।
- अधिक मात्रा में मांस खाने से किडनी कमजोर हो सकती है।
- पेन किलर लगातार लेना किडनी के लिए बेहद हानिकारक होता है।
- ज्यादा शराब पीने से लिवर के साथ-साथ किडनी भी खराब होने लगती है।
- काम के बाद जरूरी मात्रा में आराम नहीं करने से किडनी पर बुरा असर पड़ता है।
बरतें सतर्कता
जिन्हें मधुमेह यानी डायबिटीज है।
जिन्हें उच्च रक्तचाप हो।
जिनके हृदय संबंधी बीमारी है।
परिवार में किसी को गुर्दे की बीमारी रही हो।
यदि 40 साल से ज्यादा उम्र हो।
किडनी रोग के लक्षण
शरीर में सूजन आना।
पेशाब की मात्रा कम होना।
पेशाब में जलन।
लाल पेशाब होना।
अत्यधिक कमजोरी, उलटी या खून की कमी।
अचानक से शुगर के मरीज का शुगर कम हो जाना।
किडनी रोग की जांच
खून में यूरिया, क्रिएटिनिन स्तर।
पेशाब की जांच
पेट का अल्ट्रासाउंड।
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