रीड को लचीला और मजबूत बनाता है कुर्मासन योग
कर्म का अर्थ है- कछुआ। इस आसन की पूर्णावस्था में शरीर की आकृति कछुए के सामान बन जाती है। इसमें पीठ का ऊपरी भाग कछुए की पीठ, पैर तथा हाथ उसके चारों पैरों के समान हो जाते हैं। भगवत गीता में कछुए के संबंध में उदाहरण दिया गया है, जो चेतना के एक विशेष स्तर को संकेत करता है। इसे प्रत्याहार कहा है। भगवत गीता में लिखा है- "योगी वातावरण से अपनी ज्ञान इंद्रियों को उसी प्रकार समेट लेता है, जिस प्रकार कछुआ खतरे के समय अपने चारों पैरों और सिर को अंदर खींच लेता है और इससे सहज रूप से ध्यान में आगे बढ़ता है।" कुर्मासन के अभ्यास से प्रत्याहार की स्थिति सरलता से आती है और मन अंतर्मुखी हो जाता है।आसन की विधि : जमीन पर बैठकर सामने दोनों पैरों को फैलाएं। पैरों के बीच आधा मीटर का अंतर रखें। दोनों घुटनों को थोड़ा मोड़ें। दोनों एड़ियां जमीन से सटी रहें, आंखें खुली रखें। अब सामने झुककर गहरा रेचक करें। झुकते हुए दोनों हाथों को घुटनों के नीचे रखें। हथेलियां ऊपर या नीचे रखें। अब धीरे-धीरे झुकते हुए दोनों हाथों को पैरों के बीच सरकाएं। दोनों हाथों को पैरों के नीचे से सरकाते हुए पीछे ले जाएं, जब तक दोनों कोहनियां घुटने के नीचे पीछे की ओर ना चली जाएं। कुछ समय तक स्वाभाविक श्वसन करें और मेरुदंड को शिथिल करें।
तीसरी स्थिति में मेरुदंड को पूर्णतः शिथिल कर दें। पीठ की मांसपेशियां पर तनाव न डालें। गहरा रेचक करें। अब धीरे-धीरे एड़ियों को सरकाते जाएं और पैरों को सीधा करें। शरीर को आगे झुकाएं। तनाव न पड़ने दें। कुछ आगे झुकने पर पूरक करें और शरीर को शिथिल कर दें। अपनी शारीरिक स्थिति को संभालें और संपूर्ण शरीर को शिथिल करें। इस क्रिया को तब तक दुहराएं, जब तक आपका सिर जमीन से दोनों पैरों के बीच में टिक न जाये। यह संपूर्ण क्रिया धीरे-धीरे करें, जिससे रीढ़ की हड्डी पर तनाव तथा जोर न पड़े। अपनी टुड्डी जमीन पर लगा सकते हैं, तो लगाएं। यह आसन की अंतिम स्थिति है। अपने संपूर्ण शरीर को शिथिल करें, आंखें बंद रखें। श्वसन क्रिया के प्रति जागरूक रहें। अवस्था में जितना संभव हो रहें, फिर अपनी स्थिति में लौट आएं।
कौन इसे न करे:
स्लिप डिस्क, हर्निया, साइटिका से पीड़ित लोग इसे न करें। आसन के दौरान यथासंभव झुकें, जितनी आपकी रीढ़ लचीली है, अन्यथा नुकसान हो सकता है। योग्य प्रशिक्षक का मार्गदर्शन लें।
विपरीत आसन:
आसन के पश्चात तथा पूर्व किसी भी विपरीत आसन को कर सकते हैं- जैसे भुजंगासन, मच्छासन और सुप्त वज्रासन।
आसन के लाभ:
कुर्मासन उदर के समस्त अंगों को पुष्ट करता है। यह मधुमेह, उदर-वायु एवं कब्ज जैसे रोगों के उपचार में सहायक है। यह मेरुदंड में रक्त संचार बढ़ाता है। धैर्य, आंतरिक सुरक्षा और समर्पण के भाव में वृद्धि करता है। वासना, भय और क्रोध का शमन होता है। यह अन्य सामने झुकने वाले आसनों के समान ही लाभकारी है, जो रीढ़ को लचीला बनाता है, स्नायुओं को शक्ति प्रदान करता है, पाचन अंगों की मालिश करता है। विशेषकर मानसिक शांति पाने में उपयोगी है।
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