द्विपाद कंधरासन करने की विधि और लाभ
आरोग्य शरीर ही सुफल व सफल जीवन का आधार है। द्विपाद कंधरासन को नियमित करने वाला व्यक्ति फुर्तीला, सबल और यौवनमय बनता है। पूरे शरीर को निरोगी रखने में यह आसन बेहद महत्वपूर्ण है। यहां तक कि मधुमेह रोगियों के लिए रामबाण उपाय है। यह तंत्रिका-तंत्र के नियंत्रण में सहायक है, जिससे मणिपुर (सौर जालक) और एड्रेनल ग्रंथियों की अच्छी मालिश हो जाती है और प्राण-शक्ति में वृद्धि होती है। पाचन, प्रजनन और उत्सर्जन प्रणालियों की कार्यक्षमता में सुधार लाता है। मेरुदंड तथा उसके दोनों तरफ से जाने वाले मज्जातंत्र को पोषण देता है, जिससे मेरुदंड कोमल एवं लचीला बनता है। अतः यह पूरे शरीर को निरोग, सबल व क्रियाशील करता है। इससे पाचन तंत्र के सभी अंग क्रियाशील होते हैं, जठराग्नि प्रदीप्त होती है। कब्ज, गैस, अजीर्ण के रोगों में यह बहुत प्रभावशाली है। लीवर, यकृत, स्प्लीन प्लीहा, अग्नाशय, पेनक्रियाज इत्यादि को क्षमतावान बनाता है, जो शूगर के स्तर को नियंत्रित रखने में सहायक है।द्विपाद कंधरासन करने की विधि, लाभ और सावधानी
श्वसन : भुजाओ को जमीन के समांनातर ऊपर उठाते समय श्वास लें। बगल में झुकते समय श्वास बाहर छोड़ें। अंतिम स्थिति में सामान्य श्वसन करें।
अवधि: एक आसन-सत्र में मात्र एक बार करें।
सजगता : शारीरिक-श्वास पर। आध्यात्मिक स्वाधिष्टान-चक्र पर।
क्रम : इसका अभ्यास आसन-कार्यक्रम के अंत में करें और इसके बाद पीछे झुक कर किये जाने वाले आसन, जैसे- धनुरासन, भुजंगासन या मत्स्यासन में से कोई एक करें।
सीमाएं : जब तक एक पाद शिरासन में दक्षता प्राप्त न हो, तब तक इसे न करें। मांसपेशियों के तनाव और तंत्रिकाओं की क्षति से बचाव के लिए इसे तब तक आरंभ न करें जब तक शरीर लचीला न हो जाये। पीठ की बीमारी से पीड़ित लोग इसे न करें।
द्विपाद कंधरासन करते वक़्त रखे कुछ सावधानी
उच्च रक्तचाप व हृदय रोगों में इसे न करें। रीढ़ के लंबर के रोगी, स्पॉन्डिलाइटिस में, स्लिप डिस्क में, पुराने कमर दर्द में व साइटिका के रोगी, गर्भवती इसे न करें। मासिक धर्म में भी यह वर्जित है। आसन करते समय किसी भी अंग को झटका न दें। अगर आसन करते हुए शरीर में कहीं भी पीड़ा हो, तो तुरंत समाप्त कर शवासन में लेट जाएं।
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