पेट की चर्बी कम करता है योगमुद्रासन

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पेट की चर्बी कम करता है योगमुद्रासन

मनुष्य का शरीर पुरुष एवं प्रकृति तत्व का अनोखा समन्वय है। इसमें निराकार परमात्मा, आत्मा स्वरूप में व उसकी साकार प्रकृति, मन व शरीर के रूप में विद्यमान है। मनुष्य चेतन, मन एवं तन का समग्रीभूत स्वरूप है। चेतना हमें आत्मा की शक्ति के रूप में प्राप्त होती है। इससे हमारा मन, हृदय व शरीर संचालित होता है। इसे हमने प्राणशक्ति भी कहा है।
आनंद मनुष्य का सहज स्वभाव है, लेकिन उसे प्राप्त करने के लिए स्वस्थ होना परम आवश्यक है। प्राचीन काल से योगासन इस उद्देश्य की प्राप्ति में सबसे सरलतम जरिया रहा है, जिसके द्वारा हम अपने तन-मन को पूर्ण आरोग्य रख सकते हैं। योगमुद्रासन हमारे पूर्ण स्वास्थ्य की प्राप्ति में बहुत सहायक है।

योगासन विधि : पद्मासन में सीधे बैठ जाएं। आंखें बंद कर लें। दोनों हाथ पीछे ले जाकर बायें हाथ की हथेली से दायें हाथ की कलाई को पकड़ लें। लंबी गहरी श्वास लें। अब धीरे-धीरे श्वास छोड़ते हुए आगे की तरफ झुकें। रीढ़ को सीधा रखें और झुकते हुए माथे को जमीन पर लगाने की यथासंभव कोशिश करें। शरीर को ढीला छोड़ दें। लंबी गहरी श्वास लेते रहें। अगर आप मूलबन्ध व उड्डीयान बंद लगा सकते हैं, तो उचित होगा। यह आसन की पूर्ण स्थिति है। जब आपके हाथ पीछे बंधे हुए हैं और माथा जमीन पर लगा है, शरीर पूर्ण विश्राम में है। इस स्थिति में सुविधानुसार कुछ मिनट तक रहें। बाद में समय बढ़ाएं। ध्यान रहे कि इस स्थिति में पेट व पंजों पर दबाव आता है। घुटनों में खिंचाव आता है। अगर दर्द महसूस हो, तो आसन छोड़ दें। अब धीरे-धीरे श्वास भरते हुए वापस पद्मासन में आ जाएं। हाथों के बंधन को छोड़ दें व हाथों को सामने जांघों पर रख कर विश्राम करें। यह प्रक्रिया 4-5 बार दोहराएं। इस आसन के विपरीत मत्स्यासन, उष्ट्रासन एवं भुजंगासन करने से लाभ दोगुना होता हैं।

नियम: शौच के बाद खाली पेट, सुबह का समय आसन के लिए सबसे उपयुक्त है। भोजन के 4 घंटे बाद भी कर सकते हैं। सूर्योदय के एक घंटे पहले से एक घंटे बाद तक ऑक्सीजन एवं प्राण शक्ति वायुमंडल में सबसे अधिक रहती है। यह समय योगाभ्यास के लिए सबसे उपयुक्त है। खुली हवा में, बाग-बगीचे में करना अतिरिक्त लाभ देता है। योगासन के लिए जमीन पर मोटी दरी या योग मैट अवश्य बिछाएं, ताकि ऊर्जा पृथ्वी में विसर्जित न हो।

आसन के लाभ: पाचन तंत्र के लिए यह आसन बहुत लाभप्रद है। जठराग्नि एवं पाचन क्रिया को सक्रिय करता है। कब्ज, गैस, अपच आदि पेट रोगों को ठीक करता है। लिवर, तिल्ली, आमाशय, छोटी आंत को सबल बनाता है। मधुमेह को नियंत्रित करने में बहुत उपयोगी है। यह पूरे पाचन अंगों की मालिश करता है एवं उन्हें पुष्ट रखता है। वहीं रीढ़ की हड्डी व स्नायु में खिंचाव पैदा कर स्नायु तंत्र को क्षमतावान बनाता है। इससे पेट की चर्बी कम होती है। आसन के सतत अभ्यास से शरीर में प्राण शक्ति का संचार बढ़ता है।

कौन इसे न करे : यह आसन पद्मासन सिद्ध व्यक्ति ही करे। जिन्हें नेत्र रोग, पीठ में दर्द, हृदय रोग या उच्च रक्तचाप है, वे आसन को न करें। कोई शल्य चिकित्सा हुई है, तो भी नहीं करना चाहिए। गर्भवती के लिए भी इसे करना वर्जित है।
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